गृहमंत्री अमित शाह ने सदन में रखा प्रस्ताव
बाल अपराध और महिला हिंसा पर नये कानेन में बरती जाएगी सख्ती
रिपोर्टः ओम प्रकाश त्रिपाठी
दिल्ली।
संसद के मॉनसून सत्र (Monsoon Session) के आखिरी दिन गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने लोकसभा में तीन नए बिल पेश किए। नए बिल इंडियन पीनल कोड (IPC), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे। IPC की जगह भारतीय न्याय संहिता लेगी। वहीं, दंड प्रक्रिया संहिता की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता लेगी। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह भारतीय साक्ष्य लेगा। गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah Parliament Speech) ने सदन में बिल पेश करते हुए कहा कि देश में गुलामी की सभी निशानियों को समाप्त करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) की सरकार के पांच प्रण के अनुरूप इन विधेयकों को लाया गया है जो जनता के लिए न्याय प्रणाली को सुगम और सरल बनाएंगे। गृह मंत्री के प्रस्ताव पर तीनों विधेयकों को संसदीय स्थायी समिति को भेजा जाएगा ताकि इन पर व्यापक विचार-विमर्श हो सके।
नए बिल में क्या है और क्या बदल जाएगा?
मॉब लिंचिंग और नाबालिगों से रेप के मामलों में मौत की सजा देने तक का प्रावधान किया जाएगा।
राजद्रोह को पूरी तरह खत्म कर दिया जाएगा। शाह ने कहा, ‘यह लोकतंत्र है, सभी को बोलने का अधिकार है।’
पहले आतंकवाद की कोई परिभाषा नहीं थी। पहली बार आतंकवाद को परिभाषित किया जा रहा है।
भगोड़े अपराधी की अनुपस्थिति में मुकदमा चलेगा और सजा सुनाई जाएगी।
वीडियोग्राफी होने पर मुकदमे के अंत तक वाहनों को नहीं रखा जाएगा।
दंड न्याय प्रणाली को पूरी तरह बदला जाएगा और सभी को अधिकतम 3 साल में न्याय दिलाने की सोच है।
किसी अपराध के मामले में प्राथमिकी दर्ज करने से लेकर न्याय पाने तक पूरी प्रक्रिया डिजिटल होगी।
7 साल या उससे अधिक कारावास की सजा वाले अपराध में फोरेंसिक दल का क्राइम सीन पर जाना जरूरी होगा।
देश के हर जिले में भविष्य में तीन चलित फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाएं (FSL) तैनात रहेंगी।
देश में अपराध कहीं भी हो, उसकी जीरो FIR कहीं से भी दर्ज की जा सकेगी। संबंधित थाने को 15 दिन के अंदर शिकायत भेजी जाएगी।
यौन हिंसा के मामलों में पीड़ित का बयान और उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य होगी।
7 साल या अधिक कारावास की सजा वाले अपराध के मामले में पीड़ित का पक्ष सुने बिना कोई सरकार मामले को वापस नहीं ले सकेगी।
अदालतों में मुकदमों में देरी रोकने के लिए तीन साल से कम कारावास के मामलों में समरी ट्रायल ही पर्याप्त होगी।
पुलिस को 90 दिन में आरोप पत्र दायर करना होगा। जांच अधिकतम 180 दिन में समाप्त करनी होगी।
सुनवाई के बाद अदालत को 30 दिन के अंदर फैसला सुनाना होगा। इसे एक हफ्ते के अंदर ऑनलाइन डालना होगा।
नौकरशाहों के खिलाफ शिकायत दायर करने के लिए संबंधित अधिकारियों को 120 दिन के अंदर अनुमति देनी होगी या उससे इनकार करना होगा।
संगठित अपराध या अंतरराज्यीय गिरोहों के मामले में कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है।
विवाह, रोजगार या पदोन्नति के बहाने अथवा पहचान छिपाकर महिलाओं से यौन संबंध बनाने को अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा।
क्यों बदले गए ये कानून?
अपने संबोधन के दौरान अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में ही हम सबका मार्गदर्शन किया था कि अंग्रेजों के बनाए हुए जितने भी कानून हैं उन पर सोच-विचार और चर्चा करके उन्हें आज के समय के अनुरूप और भारतीय समाज के हित में बनाया जाना चाहिए। वहीं से ये प्रक्रिया शुरू हुई। शाह ने कहा कि ये कानून अंग्रेज शासन को मजबूत करने एवं उनकी रक्षा के लिए उन्होंने बनाए थे। उन्होंने कहा कि इनका उद्देश्य दंड देना था, न्याय देना नहीं था। गृह मंत्री ने कहा कि सरकार लंबे विचार-विमर्श और मंथन के बाद तीनों नये विधेयक लेकर आई है और इनके माध्यम से भारत के नागरिकों को संविधान में प्रदत्त सारे अधिकारों का संरक्षण किया जाएगा।
गृह मंत्री ने कहा कि IPC में मनुष्य की हत्या से संबंधित अपराध धारा 302 के तहत दर्ज था, जबकि शासन के अधिकारी पर हमला, खजाने की लूट जैसे अपराधों को पहले दर्ज किया गया था। शाह ने कहा, ‘हम इस सोच को बदल रहे हैं। नये कानून में सबसे पहला अध्याय महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध से संबंधित होगा और दूसरे अध्याय में मनुष्य हत्या के अपराध से जुड़े प्रावधान होंगे।’ शाह ने कहा कि 2027 तक देश की सभी अदालतों को कम्प्यूटराइज्ड किया जाएगा। प्राथमिकी से लेकर निर्णय लेने तक की प्रक्रिया को डिजिटल बनाया जाएगा। अदालतों की समस्त कार्यवाही प्रौद्योगिकी के माध्यम से होगी और आरोपियों की पेशी वीडियो कॉन्फ्रेंस से होगी।
इन विधेयकों पर चार साल विचार-विमर्श
गृह मंत्री ने कहा कि अगस्त 2019 में देश के सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों, विधि विश्वविद्यालयों को पत्र भेजकर नये कानूनों के संबंध में सुझाव मांगे गये थे। उन्होंने कहा कि 2020 में इस दिशा में कुछ आधार तैयार होने के बाद सभी सांसदों, विधायकों, मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों को पत्र लिखा गया। शाह ने कहा कि चार साल तक गहन विचार-विमर्श के बाद ये विधेयक लाये गये हैं। उन्होंने कहा कि इन पर मंथन के लिए हुईं 158 बैठकों में वह स्वयं उपस्थित रहे।
अमित शाह ने कहा कि IPC और सीआरपीसी समेत तीनों कानून गुलामी के निशान से भरे हैं, जिनमें ब्रिटेन की संसद, लंदन के राजपत्र, ज्यूरी और बैरिस्टर और राष्ट्रमंडल के प्रस्ताव आदि का उल्लेख है। विधेयकों का उल्लेख करते हुए गृह मंत्री ने बताया कि भारतीय दंड संहिता 1860 में बनाई गई थी, वहीं दंड प्रक्रिया संहिता 1898 में बनाई गई और भारतीय साक्ष्य संहिता 1872 में बनी थी। उन्होंने कहा कि भारतीय दंड संहिता 1860 की जगह अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 स्थापित होगी।