दैनिक भारत न्यूज
आजमगढ़।
बड़े सपने देखने वालों के लिए कोई भी चीज कभी रास्ते की रुकावट नहीं बन सकती। यह वाक्य मेरे नहीं बल्कि होनहारों में जोश और उर्जा भरने वाले आजमगढ़ के जिलाधिकारी रवींद्र कुमार द्वितीय का है। जो हिमालय की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को फतह कर तिरंगा झंडा फहरा चुके हैं।
यह कारनामा करने वाले वह देश के पहले आईएएस हैं। जिलाधिकारी रवींद्र कुमार लगातार दो बार माउंट एवरेस्ट पर झंडा फहराकर यह नया किर्तिमान स्थापित किए हैं। बुधवार को विश्व एवरेस्ट दिवस के अवसर पर डीएम ने अपने अनुभव को साझा किया।
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किसान परिवार में हुआ है रवींद्र का जन्म
मूलरूप से बिहार प्रदेश के बेगूसराय के रहने वाले हैं। इनका परिवार किसान है। रवीन्द्र कुमार रांची से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी करने के बाद आईआईटी का एंट्रेंस एग्जाम क्वालीफाई किया। शिपिंग फील्ड में अपना कैरियर बनाते हुए 2002 में मर्चेंट नेवी ज्वाइन किया। साल 2007 में उन्हें चीफ ऑफिसर की रैंक पर प्रमोशन भी मिला, लेकिन कुछ बड़ा कर गुजरने की चाह के चलते वह वहां ज्यादा दिन नहीं रुक पाए। साल 2008 तक मर्चेंट नेवी में काम करने के बाद उन्होंने सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू की और महज 2 साल के अंदर ही अपने दूसरे अटेम्प्ट 2011 में सिविल सर्विस की परीक्षा को पास कर लिया। साल 2012 में बतौर आईएएस पहली तैनाती सिक्किम कैडर में हुई, जहां पर उन्होंने कई ऐसा काम किया जिसकी वजह से उन्हें आज भी याद किया जाता है।
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दिलचस्प है रवींद्र के पर्वतारोही बनने की कहानी
आईएएस रवीन्द्र कुमार द्वितीय की पर्वतारोही बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है। पर्वतारोही बनने के पीछे सबसे महत्वपूर्ण भूमिका साल 2012 में आईएएस बनने के बाद सिक्किम कैडर में तैनाती रही। रवींद्र के मुताबिक सिक्किम कैडर ज्वाइन करने के बाद उन्होंने वहां पर भूकंप से प्रभावित जगहों पर रेस्क्यू करने का जिम्मा उठाया। क्योंकि कुछ ही समय पूर्व वहां पर भूकंप आया हुआ था। भूकंप आने के कारण पहाड़ी इलाकों में आने जाने का रास्ता टूट गया था और जगह-जगह पर खाई और गड्ढे बन गए थे। उस प्राकृतिक आपदा के कारण प्रशासन के लोगों का वहां तक पहुंच पाना काफी मुश्किल हो गया था। जिसके लिए उन्हें पर्वतारोहियों के मदद की जरूरत पड़ी और फिर यहीं से शुरू हुआ रवीन्द्र कुमार द्वितीय का पर्वतारोही बनने का सफर। दरअसल भूकंप से प्रभावित इलाकों में रेस्क्यू कार्यों के लिए के लिए उन्हें माउंटेनियरिंग ट्रेनिंग लेनी पड़ी। फिर क्या था ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने अपने इस टैलेंट में भी जोर आजमाने की ठानी और चल दिए माउंट एवरेस्ट को फतह करने। हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट (HMI) में बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स और एडवांस्ड माउंटेनियरिंग कोर्स किया और करीब एक साल कड़ी मेहनत करने के बाद उन्होंने अपने आप को माउंटेन क्लाइंबिंग के लिए तैयार किया। अपने साथियों और सहकर्मियों की मदद से उन्होंने 19 मई 2013 में पहली बार माउंट एवरेस्ट के शिखर पर तिरंगा लहराया और यह मुकाम हासिल करने वाले देश के पहले और इकलौते आईएएस बने। पहली बार माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी करने के बाद रवीन्द्र कुमार रुके नहीं और पर्वत को फतह करने की अपनी इस यात्रा को जारी रखा।
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प्रधानमंत्री भी हुए रवींद्र के मुरीद
साल 2014 में नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने और स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत किया। रवींद्र कुमार प्रधानमंत्री के इस मुहिम को आगे बढ़ाने का जिम्मा उठाया और यह तय किया कि स्वच्छ भारत मिशन का फ्लैग वह माउंट एवरेस्ट पर जाकर लहराएंगे। फिर यहां से शुरू हुआ रवीन्द्र कुमार का स्वच्छ भारत अभियान वाला माउंट एवरेस्ट मिशन। पहली बार की तरह इस बार भी उन्होंने माउंट एवरेस्ट को फतह करने के लिए नेपाल का रास्ता चुना, लेकिन इस बार प्रकृति को कुछ और मंजूर था। 25 अप्रैल 2015 को माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई के दौरान रवीन्द्र कुमार अपनी टीम के साथ एवरेस्ट बेस कैंप पर मौजूद थे और वहां पर भूकंप आने से हिमस्खलन हो गया। जहां पर उनके टीम के कई लोग घायल भी हुए। लेकिन रवीन्द्र कुमार की अटूट इच्छा शक्ति ने हार नहीं मानी और इस बार माउंट एवरेस्ट को फतह करने का रास्ता तिब्बत से होकर गुजरा और 23 मई 2015 के दिन उन्होंने दोबारा माउंट एवरेस्ट की चोटी को फतह कर तिरंगा लहरा दिया। माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने के बाद उन्होंने तिरंगा लहराने के साथ-साथ कुछ और भी ऐसा अनोखा किया जो बेहद यादगार हो गया। माउंट एवरेस्ट पर पहुंचने के बाद उन्होंने स्वच्छ भारत मिशन और नमामि गंगे का भी फ्लैग लहराया।